भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो () |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | जिंदगी को सजा | + | जिंदगी को सजा नहीं पाया |
− | बोझ इसका उठा | + | बोझ इसका उठा नहीं पाया |
खूब चश्मे बदल के देख लिए | खूब चश्मे बदल के देख लिए | ||
− | तीरगी को हटा | + | तीरगी को हटा नहीं पाया |
प्यार का मैं सबूत क्या देता | प्यार का मैं सबूत क्या देता | ||
− | चीर कर दिल दिखा | + | चीर कर दिल दिखा नहीं पाया |
जो थका ही नही सज़ा देते | जो थका ही नही सज़ा देते | ||
− | वो खता क्यों बता | + | वो खता क्यों बता नहीं पाया |
वो जो बिखरा है तिनके की सूरत | वो जो बिखरा है तिनके की सूरत | ||
− | बोझ अपना उठा | + | बोझ अपना उठा नहीं पाया |
आईने में खुदा को देखा जब | आईने में खुदा को देखा जब | ||
− | ख़ुद से उसको जुदा | + | ख़ुद से उसको जुदा नहीं पाया |
− | नाम जगदीश है कहा उसने | + | नाम "जगदीश" है कहा उसने |
− | और कुछ भी बता | + | और कुछ भी बता नहीं पाया |
</poem> | </poem> |
20:16, 26 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
जिंदगी को सजा नहीं पाया
बोझ इसका उठा नहीं पाया
खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नहीं पाया
प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नहीं पाया
जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नहीं पाया
वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नहीं पाया
आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नहीं पाया
नाम "जगदीश" है कहा उसने
और कुछ भी बता नहीं पाया