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जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम
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दिल अगर फूल सा नही होता
यू किसी ने छला नही होता
था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नही होता
दिल में रहते है दिल रुबाओं के
आशिको का पता नही होता
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नही तब तक
इश्क जब तक हुआ नही होता
पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नही होता
होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यू रुसवा हुआ नही होता
जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नही होता
ख़ुद से उल्फत जो कर नही सकता
वो किसी का सगा नही होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी ग़र गिरा नहीं होता