भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीवन क्या है, कांच का घर है / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(new)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
 
|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 
जीवन क्या है, कांच का घर है।
 
जीवन क्या है, कांच का घर है।
 
 
मौत के हाथों में पत्थर है।
 
मौत के हाथों में पत्थर है।
 
  
 
पर्वत तो हो सकते हैं हम
 
पर्वत तो हो सकते हैं हम
 
 
सागर होना नदियों पर है।
 
सागर होना नदियों पर है।
 
  
 
मौसम, मजहब, चाहत, मण्डी
 
मौसम, मजहब, चाहत, मण्डी
 
 
घर पर किसका खास असर है।
 
घर पर किसका खास असर है।
 
  
 
जब सपने नाखूनों में हों
 
जब सपने नाखूनों में हों
 
 
आँखें होना बुरी खबर है।
 
आँखें होना बुरी खबर है।
 
  
 
विष पी कर हम अमर हो गए
 
विष पी कर हम अमर हो गए
 
 
मन का जादू बड़ा जबर है।
 
मन का जादू बड़ा जबर है।
 
  
 
गांव में बदली इस दुनिया की
 
गांव में बदली इस दुनिया की
 
 
जड़ में कोई महानगर है।
 
जड़ में कोई महानगर है।
 
  
 
आँसू तुम कहते हो जिसको
 
आँसू तुम कहते हो जिसको
 
 
दुनिया का पहला अक्षर है।
 
दुनिया का पहला अक्षर है।
 +
</poem>

11:10, 26 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

जीवन क्या है, कांच का घर है।
मौत के हाथों में पत्थर है।

पर्वत तो हो सकते हैं हम
सागर होना नदियों पर है।

मौसम, मजहब, चाहत, मण्डी
घर पर किसका खास असर है।

जब सपने नाखूनों में हों
आँखें होना बुरी खबर है।

विष पी कर हम अमर हो गए
मन का जादू बड़ा जबर है।

गांव में बदली इस दुनिया की
जड़ में कोई महानगर है।

आँसू तुम कहते हो जिसको
दुनिया का पहला अक्षर है।