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"जो पीने में ज़्यादा या कम देखते हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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वे अपने ही मन का वहम देखते हैं | वे अपने ही मन का वहम देखते हैं | ||
− | हमें देखते देख शरमा | + | हमें देखते देख शरमा गये वे |
− | नहीं यों | + | नहीं यों किसीका भरम देखते हैं |
किसीने हँसी में न कुछ कह दिया हो! | किसीने हँसी में न कुछ कह दिया हो! |
01:19, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
जो पीने में ज़्यादा या कम देखते हैं
वे अपने ही मन का वहम देखते हैं
हमें देखते देख शरमा गये वे
नहीं यों किसीका भरम देखते हैं
किसीने हँसी में न कुछ कह दिया हो!
इधर आजकल उनको कम देखते हैं
कहीं चोट सीने में गहरी लगी है
हम आज उनकी आँखें भी नम देखते हैं
यहीं छोड़ दें बात बीते दिनों की
न तुम उनको देखो, न हम देखते हैं
गुलाब! इन पँखुरियों को छितरा रहे वे
कलाई में कितना है दम, देखते हैं