भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो शज़र सूख गया है वो हरा कैसे हो / शहजाद अहमद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहजाद अहमद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:45, 19 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
जो शज़र सूख गया है वो हरा कैसे हो
मैं पयम्बर तो नहीं मेरा कहा कैसे हो
जिसको जाना ही नहीं उसको खुदा क्यूँ मानें
और जिसे जान चुके हैं वो खुदा कैसे हो
दूर से देख के मैंने उसे पहचान लिया
उसने इतना भी नहीं मुझसे कहा कैसे हो
वो भी एक दौर जब मैंने उसे चाहा था
दिल का दरवाज़ा है हर वक़्त खुला कैसे हो
उम्र सारी तो अँधेरे में नहीं कट सकती
हम अगर दिल न जलाएं तो ज़िया कैसे हो
जिससे दो रोज भी खुलकर न मुलाकात हुई
मुद्दतों बाद मिले भी तो गिला कैसे हो