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"जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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वह, जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा
 
वह, जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा
 
 
सदी का सबसे खतरनाक आदमी होगा
 
सदी का सबसे खतरनाक आदमी होगा
 
 
चाहे जीता हुआ या फिर हरा हुआ
 
चाहे जीता हुआ या फिर हरा हुआ
 
 
रक्ताभ आँखें, ओठों पर मुस्कान और पंजों में थरथराहट लिए
 
रक्ताभ आँखें, ओठों पर मुस्कान और पंजों में थरथराहट लिए
 
 
जो तुम्हे जीतना चाहेगा
 
जो तुम्हे जीतना चाहेगा
 
 
नहीं कर पाएगा यात्रा नियत रास्तों से कभी
 
नहीं कर पाएगा यात्रा नियत रास्तों से कभी
 
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बुद्ध, शंकर, कबीर या गाँधी की तरह
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नहीं करेगा कभी कोशिश
 
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फटे वक्त पर पैबंद लगाने की
 
फटे वक्त पर पैबंद लगाने की
 
 
प्रत्युत फटे वक्त की दरार से
 
प्रत्युत फटे वक्त की दरार से
 
 
निकल भागेगा उस पार वह
 
निकल भागेगा उस पार वह
 
 
नियमित नहीं कर पाएगी तुम्हारी व्यवस्था उसे
 
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एक वही होगा
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जो भूल चुका होगा हँसना , रोना या सहमना
 
जो भूल चुका होगा हँसना , रोना या सहमना
 
 
कर्ण या अर्जुन की मानिंद
 
कर्ण या अर्जुन की मानिंद
 
 
नहीं लगाएगा निशाना मछली की आँख पर
 
नहीं लगाएगा निशाना मछली की आँख पर
 
 
वह तो चलाएगा सम्मोहक बाण
 
वह तो चलाएगा सम्मोहक बाण
 
 
उसे नहीं चाहिए द्रौपदी, नहीं चाहिए न्याय
 
उसे नहीं चाहिए द्रौपदी, नहीं चाहिए न्याय
 
 
वह तो जीतना चाहता है अभिलाषा
 
वह तो जीतना चाहता है अभिलाषा
 
 
तेरी-मेरी- इसकी-उसकी सबकी
 
तेरी-मेरी- इसकी-उसकी सबकी
 
 
वाही तो है जो घुस गया है सबकी नथनों में
 
वाही तो है जो घुस गया है सबकी नथनों में
 
 
हवा में फैली मादक खुशबू की तरह .......
 
हवा में फैली मादक खुशबू की तरह .......
 
 
ऐसे में मेरा सच इतना भर है
 
ऐसे में मेरा सच इतना भर है
 
 
कि मैं भयभीत तो हूँ
 
कि मैं भयभीत तो हूँ
 
 
पर पहचानता नहीं !
 
पर पहचानता नहीं !
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10:00, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

वह, जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा
सदी का सबसे खतरनाक आदमी होगा
चाहे जीता हुआ या फिर हरा हुआ
रक्ताभ आँखें, ओठों पर मुस्कान और पंजों में थरथराहट लिए
जो तुम्हे जीतना चाहेगा
नहीं कर पाएगा यात्रा नियत रास्तों से कभी
बुद्ध, शंकर, कबीर या गाँधी की तरह
नहीं करेगा कभी कोशिश
फटे वक्त पर पैबंद लगाने की
प्रत्युत फटे वक्त की दरार से
निकल भागेगा उस पार वह
नियमित नहीं कर पाएगी तुम्हारी व्यवस्था उसे
एक वही होगा
जो भूल चुका होगा हँसना , रोना या सहमना
कर्ण या अर्जुन की मानिंद
नहीं लगाएगा निशाना मछली की आँख पर
वह तो चलाएगा सम्मोहक बाण
उसे नहीं चाहिए द्रौपदी, नहीं चाहिए न्याय
वह तो जीतना चाहता है अभिलाषा
तेरी-मेरी- इसकी-उसकी सबकी
वाही तो है जो घुस गया है सबकी नथनों में
हवा में फैली मादक खुशबू की तरह .......
ऐसे में मेरा सच इतना भर है
कि मैं भयभीत तो हूँ
पर पहचानता नहीं !