भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ / शाहिद कबीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाहिद कबीर }} {{KKCatGhazal}} <poem> ठुकराओ अब कि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
इतना तो मेरे यार मैं नशे में हूँ
 
इतना तो मेरे यार मैं नशे में हूँ
  
अपनी जिसे नहीं उसे ‘शाहीद’ की क्या ख़बर
+
अपनी जिसे नहीं उसे ‘शाहिद’ की क्या ख़बर
 
तुम उस का इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ
 
तुम उस का इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ
 
</poem>
 
</poem>

19:14, 7 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ

अब भी दिला रहा हूँ यक़ीन-ए-वफ़ा मगर
मेरा न ए‘तिबार करो मैं नशे में हूँ

अब तुम को इख़्तियार है ऐ अहल-ए-कारवाँ
जो राह इख़्तियार करो मैं नशे में हूँ

गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
इतना तो मेरे यार मैं नशे में हूँ

अपनी जिसे नहीं उसे ‘शाहिद’ की क्या ख़बर
तुम उस का इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ