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"तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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पले फूलों में हम, काँटों पे पग धरना नहीं आता | पले फूलों में हम, काँटों पे पग धरना नहीं आता | ||
01:59, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता
उन्हें इस ज़िन्दगी से प्यार भी करना नहीं आता
ज़रा उँगली पकड़कर दो क़दम चलना सीखा जाओ
पले फूलों में हम, काँटों पे पग धरना नहीं आता
हमारी बेकली का मोल क्या हो उनकी आँखों में!
हमें तो आँसुओं में रंग भी भरना नहीं आता
जलाकर खाक़ कर देती है अपने मिलनेवालों को
हमारे दिल को पर इस आग से डरना नहीं आता
जिन्हें भाते नहीं है बाग़ में काँटे, गुलाब! उनको
कभी फूलों से सच्चा प्यार भी करना नहीं आता