भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
 
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=
+
|संग्रह=लेकिन सवाल टेढ़ा है / डी. एम. मिश्र
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
  
 
लोग कबूतर बनकर खाली टुक -टुक ताक रहे
 
लोग कबूतर बनकर खाली टुक -टुक ताक रहे
उसकी जुमलेबाजी में कितनी मक्कारी  है ?
+
उसकी जुमलेबाजी में कितनी मक्कारी  है  
  
 
रंग बदलने वाली उसकी फ़ितरत भी देखी
 
रंग बदलने वाली उसकी फ़ितरत भी देखी
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
फिर भी माली की भी तो कुछ जिम्मेदारी है
 
फिर भी माली की भी तो कुछ जिम्मेदारी है
  
उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या और कहूँ ?
+
उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या और कहूँ  
 
लोग यही बस देख रहे हैं सूरत प्यारी  है  
 
लोग यही बस देख रहे हैं सूरत प्यारी  है  
 
</poem>
 
</poem>

14:56, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है
आग लगाने वाला पानी का व्यापारी है

मछुआरे की नीयत खोटी तब वो समझ सकी
कँटिया में जब हाय फँसी मछली बेचारी है

लोग कबूतर बनकर खाली टुक -टुक ताक रहे
उसकी जुमलेबाजी में कितनी मक्कारी है

रंग बदलने वाली उसकी फ़ितरत भी देखी
वो गिरगिट सा मतलब से ही रखता यारी है

यारो मरने की ख़ातिर तो दहशत ही काफ़ी
मान लिया कोरोना इक घातक बीमारी है

काँटे अपने आप उगे हैं होगी बात सही
फिर भी माली की भी तो कुछ जिम्मेदारी है

उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या और कहूँ
लोग यही बस देख रहे हैं सूरत प्यारी है