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"दिन गुज़रते गये, रात होती रही / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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08:46, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
दिन गुज़रते गये, रात होती रही
ज़िन्दगी खुद-ब-खुद मात होती रही
प्यार की कोई खुशियाँ मनाता रहा
और आँखों से बरसात होती रही
हम ग़ज़ल में उसीको उतारा किये
टीस-सी दिल में जो, रात, होती रही
हमने देखी न उनकी झलक आजतक
और हरदम मुलाक़ात होती रही
लाख थी बोलने की मनाही, गुलाब!
भेंट फिर भी ये सौग़ात होती रही