भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिन गुज़रते गये, रात होती रही / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
दिन गुज़रते गये, रात होती रही  
 
दिन गुज़रते गये, रात होती रही  
ज़िन्दगी खुद-ब-खुद मात होती रही
+
ज़िन्दगी ख़ुद-ब-ख़ुद मात होती रही
  
प्यार की कोई खुशियाँ मनाता रहा  
+
प्यार की कोई ख़ुशियाँ मनाता रहा  
 
और आँखों से बरसात होती रही
 
और आँखों से बरसात होती रही
  

03:08, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


दिन गुज़रते गये, रात होती रही
ज़िन्दगी ख़ुद-ब-ख़ुद मात होती रही

प्यार की कोई ख़ुशियाँ मनाता रहा
और आँखों से बरसात होती रही

हम ग़ज़ल में उसीको उतारा किये
टीस-सी दिल में जो, रात, होती रही

हमने देखी न उनकी झलक आजतक
और हरदम मुलाक़ात होती रही

लाख थी बोलने की मनाही, गुलाब!
भेंट फिर भी ये सौग़ात होती रही