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दिन गुज़रते गये, रात होती रही / गुलाब खंडेलवाल

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दिन गुज़रते गये, रात होती रही
ज़िन्दगी खुद-ब-खुद मात होती रही

प्यार की कोई खुशियाँ मनाता रहा
और आँखों से बरसात होती रही

हम ग़ज़ल में उसीको उतारा किये
टीस-सी दिल में जो, रात, होती रही

हमने देखी न उनकी झलक आजतक
और हरदम मुलाक़ात होती रही

लाख थी बोलने की मनाही, गुलाब!
भेंट फिर भी ये सौग़ात होती रही