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दिन गुलाब की पँखुरी / कुमार रवींद्र

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सजनी, देखो
रंग हवा में
अभी-अभी उड़कर आया इस ओर सुआ है
 
बॉटलब्रश के फूल लाल
दहका सूरज है
बौराई है छाँव
रचा रितु ने अचरज है
 
दिन गुलाब की
पँखुरी
हँसती हुई धूप है - लगता तुमने इन्हें छुआ है
 
रंग हमारी साँसों में भी है
चुटकी-भर
आओ, रँगें उसी से
इक-दूजे को जी-भर
 
बिना देह का
देव जगा है
मौसम का मिजाज़ भी तो रंगीन हुआ है
 
आसमान में
मुट्ठी-भर गुलाल बिखराएँ
'जित देखो तित लाल'
करें हम सभी दिशाएँ
 
जो डूबेंगे लाली में
वेही उबरेंगे
सजनी मानो, रंगपर्व की यही दुआ है