भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नया तरीका / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[नागार्जुन]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कवितायें]]
+
{{KKRachna
[[Category:नागार्जुन]]
+
|रचनाकार=नागार्जुन
 
+
|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
दो  हज़ार  मन  गेहूं आया  दस  गांवों के नाम
+
<poem>
 
+
दो  हज़ार  मन  गेहूँ आया  दस  गाँवों के नाम
राधे  चक्कर  लगा काटने, सुबह  हो  गयी शाम
+
राधे  चक्कर  लगा काटने, सुबह  हो  गई शाम
 
+
सौदा  पटा  बडी  मुश्किल  से, पिघले  नेताराम
+
  
 +
सौदा  पटा  बड़ी  मुश्किल  से, पिघले  नेताराम
 
पूजा  पाकर  साध  गये  चुप्पी  हाकिम-हुक्काम
 
पूजा  पाकर  साध  गये  चुप्पी  हाकिम-हुक्काम
  
भारत-सेवक  जी को था अपनी सेवा से काम
+
भारत-सेवक  जी को था अपनी सेवा से काम
 
+
खुला  चोर-बाज़ार, बढ़ा चोकर-चूनी  का दाम
खुला  चोर-बाज़ार, बढा  चोकर-चूनी  का दाम
+
 
+
भीतर  झुरा  गयी  ठठरी, बाहर  झुलसी  चाम
+
 
+
भूखी  जनता  की  खातिर  आज़ादी  हुई  हराम
+
  
 +
भीतर  झुरा  गई  ठठरी, बाहर  झुलसी  चाम
 +
भूखी  जनता  की  ख़ातिर  आज़ादी  हुई  हराम
  
 
नया  तरीका  अपनाया  है  राधे  ने  इस साल
 
नया  तरीका  अपनाया  है  राधे  ने  इस साल
 
 
बैलों  वाले  पोस्टर  साटे,  चमक  उठी  दीवाल
 
बैलों  वाले  पोस्टर  साटे,  चमक  उठी  दीवाल
  
 
नीचे  से लेकर ऊपर  तक  समझ  गया सब हाल
 
नीचे  से लेकर ऊपर  तक  समझ  गया सब हाल
 
 
सरकारी  गल्ला    चुपके  से  भेज  रहा  नेपाल
 
सरकारी  गल्ला    चुपके  से  भेज  रहा  नेपाल
  
 
अन्दर  टंगे  पडे  हैं  गांधी-तिलक-जवाहरलाल
 
अन्दर  टंगे  पडे  हैं  गांधी-तिलक-जवाहरलाल
 
 
चिकना तन, चिकना पहनावा, चिकने-चिकने गाल
 
चिकना तन, चिकना पहनावा, चिकने-चिकने गाल
  
 
चिकनी किस्मत, चिकना पेशा, मार  रहा है  माल
 
चिकनी किस्मत, चिकना पेशा, मार  रहा है  माल
 
 
नया  तरीका  अपनाया  है  राधे  ने  इस  साल
 
नया  तरीका  अपनाया  है  राधे  ने  इस  साल
  
 
+
(१९५८)
''१९५८ में लिखित''
+
</poem>

11:18, 16 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

दो हज़ार मन गेहूँ आया दस गाँवों के नाम
राधे चक्कर लगा काटने, सुबह हो गई शाम

सौदा पटा बड़ी मुश्किल से, पिघले नेताराम
पूजा पाकर साध गये चुप्पी हाकिम-हुक्काम

भारत-सेवक जी को था अपनी सेवा से काम
खुला चोर-बाज़ार, बढ़ा चोकर-चूनी का दाम

भीतर झुरा गई ठठरी, बाहर झुलसी चाम
भूखी जनता की ख़ातिर आज़ादी हुई हराम

नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल
बैलों वाले पोस्टर साटे, चमक उठी दीवाल

नीचे से लेकर ऊपर तक समझ गया सब हाल
सरकारी गल्ला चुपके से भेज रहा नेपाल

अन्दर टंगे पडे हैं गांधी-तिलक-जवाहरलाल
चिकना तन, चिकना पहनावा, चिकने-चिकने गाल

चिकनी किस्मत, चिकना पेशा, मार रहा है माल
नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल

(१९५८)