भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पर / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=ओसिप मंदेलश्ताम |संग्रह=सूखे होंठों की प्यास / ओसिप ...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:रूसी भाषा]]
 
[[Category:रूसी भाषा]]
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 
+
<poem>
 
नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पे
 
नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पे
 
 
पीट रही हैं मुझे जमकर, दिखलाएँ अपनी ताकत वे
 
पीट रही हैं मुझे जमकर, दिखलाएँ अपनी ताकत वे
 
  
 
कभी नेता लगते फोड़ों से, तो कभी फोड़े लगते नेता से
 
कभी नेता लगते फोड़ों से, तो कभी फोड़े लगते नेता से
 
 
ये कैसा दोहरा राज देश में? न छोड़ें अपनी आदत वे
 
ये कैसा दोहरा राज देश में? न छोड़ें अपनी आदत वे
 
  
 
तो फूलों से सहलाएँ वे, तो मारें खुलकर साध निशाना
 
तो फूलों से सहलाएँ वे, तो मारें खुलकर साध निशाना
 
 
कभी कोड़े मारें, कभी गदा घुमाएँ, चाहते हैं शहादत वे
 
कभी कोड़े मारें, कभी गदा घुमाएँ, चाहते हैं शहादत वे
 
  
 
तो मीठी रोटी से बहलाएँ, तो रंग मौत के दिखलाएँ
 
तो मीठी रोटी से बहलाएँ, तो रंग मौत के दिखलाएँ
 
 
कभी पुचकारें, कभी दुत्कारें, देखो, लाए हैं कयामत वे
 
कभी पुचकारें, कभी दुत्कारें, देखो, लाए हैं कयामत वे
  
 
+
'''रचनाकाल''' : 4 मई 1937
(रचनाकाल : 4 मई 1937)
+
</poem>

21:58, 7 मार्च 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओसिप मंदेलश्ताम  » संग्रह: सूखे होंठों की प्यास
»  नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पर

नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पे
पीट रही हैं मुझे जमकर, दिखलाएँ अपनी ताकत वे

कभी नेता लगते फोड़ों से, तो कभी फोड़े लगते नेता से
ये कैसा दोहरा राज देश में? न छोड़ें अपनी आदत वे

तो फूलों से सहलाएँ वे, तो मारें खुलकर साध निशाना
कभी कोड़े मारें, कभी गदा घुमाएँ, चाहते हैं शहादत वे

तो मीठी रोटी से बहलाएँ, तो रंग मौत के दिखलाएँ
कभी पुचकारें, कभी दुत्कारें, देखो, लाए हैं कयामत वे

रचनाकाल : 4 मई 1937