भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पौधे / लक्ष्मीकान्त मुकुल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:02, 29 जून 2014 के समय का अवतरण

जैसे पौधे झुकते हैं
हदस के मारे
चाहे लाख दो
खाद-पानी
कभी-कभी साहस की कमी से भी
कुनमुना नहीं पाते हैं पौधे
दिन-ब-दिन
गहराती जाती सांझ की स्याही के
भीतर तक पसारते हैं अपनी जड़े
वे उगते हैं
पत्थरों पर हरी दुबिया की तरह
हमारे अनिश्चितता के
पसरे कुहरे के बीच में
लालसा की तरह उगते हैं पौधे।