भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> प्रेम-नेम निफल…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'  
+
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
 +
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
 
}}
 
}}
[[Category:पद]]
+
{{KKCatKavitt}}
 
<poem>
 
<poem>
 
प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं,
 
प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं,

11:52, 16 जनवरी 2010 का अवतरण

प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं,
ब्रह्मज्ञान आनंद-निधान भरि लैहैं हम ।
कहै रतनाकर सुधाकर-मुखीन-ध्यान,
आँसुनि सौ धोइ जोति जोइ जरि लैहै हम ॥
आवो एक बार धारि गोकुल-गलि की धूरि,
तब इहिं नीति को प्रतीत धरि लैहैं हम ।
मन सौं, करेजै सौं, स्रवन-सिर आँखिनि सौं,
ऊधव तिहारी सीख भीख करि लैं ह्वैं हम ॥18॥