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"प्रेम करती बेटियाँ / सविता सिंह" के अवतरणों में अंतर

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आज भी बेटियाँ कितना प्रेम करती हैं पिताओं से
 
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वही जो बीच जीवन में उन्हें बेघर करते हैं
 
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धकेलते हैं उन्हें निर्धनता के अगम अन्धकार में
 
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कितनी अजीब बात है
 
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जिनके सामने झुकी रहती है सबसे ज़्यादा गरदन
 
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वही उतार लेते हैं सिर
 
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02:27, 2 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

आज भी बेटियाँ कितना प्रेम करती हैं पिताओं से
वही जो बीच जीवन में उन्हें बेघर करते हैं
धकेलते हैं उन्हें निर्धनता के अगम अन्धकार में

कितनी अजीब बात है
जिनके सामने झुकी रहती है सबसे ज़्यादा गरदन
वही उतार लेते हैं सिर