भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिसल गईं स्वीकृतियां / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 8 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन |संग्रह=डॉ० कुंवर बैचेन के नवगीत / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दृष्टि हटी जब भी
मन-पुस्तक के पेज से
फिसल गईं स्वीकृतियाँ
जीवन की मेज से।
हाथों को
मिली हुई
लेखनी बबूल की
दासी जो मेहनत के
साँवरे उसूल की
जितने ही
प्राण रहे मेरे परहेज से।
फिसल गई थीं खुशियाँ
जीवन की मेज से।
गलत दिशा
चुनी अगर
कागज के पेट ने
उसको सम्मान दिया
हर “पेपर वेट” ने
ब्याही जाती
खुशियाँ झूठ के दहेज से।
फिसल गईं स्वीकृतियाँ
जीवन की मेज से।