भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
अधरों में अब है प्यास जगी | अधरों में अब है प्यास जगी | ||
− | + | बनके झरना बह जाना तुम । | |
− | बेरंग हुए इन हाथों में | + | बेरंग हुए इन हाथों में |
− | + | बनके मेंहदी रच जाना तुम । | |
− | + | नैनों में है जो सूनापन | |
− | + | बन के काज़ल सज जाना तुम। |
15:04, 13 मार्च 2007 का अवतरण
रचनाकार: भावना कुँअर
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम ।
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।