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"फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

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अधरों में अब है प्यास जगी
 
अधरों में अब है प्यास जगी
  
बन झरना अब बह जाना तुम ।
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बनके झरना बह जाना तुम ।
  
  
बेरंग हुए इन हाथों में
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बेरंग हुए इन हाथों में  
  
बन मेहदी अब रच जाना तुम ।
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बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
  
  
पैरों में है जो सूनापन
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नैनों में है जो सूनापन
  
महावर बन के सज जाना तुम
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बन के काज़ल सज जाना तुम।

15:04, 13 मार्च 2007 का अवतरण

रचनाकार: भावना कुँअर

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फुरसत से घर में आना तुम

और आके फिर ना जाना तुम ।


मन तितली बनकर डोल रहा

बन फूल वहीं बस जाना तुम ।


अधरों में अब है प्यास जगी

बनके झरना बह जाना तुम ।


बेरंग हुए इन हाथों में

बनके मेंहदी रच जाना तुम ।


नैनों में है जो सूनापन

बन के काज़ल सज जाना तुम।