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बन्द दरों को दस्तक दें, कुछ लोग बुलायें / 'महताब' हैदर नक़वी
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बन्द दरों को दस्तक दें, कुछ लोग बुलायें
रात-रातभर रोने का माहौल बनायें
नये ख़यालों के दरवाज़े बन्द हुए
उसकी बातें फिर उसकी यादें बन जाएँ
अब तो इस ख़ालीपन से दम घुटता है
जल्दी से छुटटी हो जाये, घर जाएँ
अब के बरस शहर-ए-दिल में सन्नाटा है
हरदम करता रहता है सांय सांय