भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
कह रहे हैं, 'बोल पे सरगम के आ' | कह रहे हैं, 'बोल पे सरगम के आ' | ||
− | और दम भर, और दम भर | + | और दम भर, और दम भर आँधियो! |
दो न दस्तक दर पे यों शबनम के आ | दो न दस्तक दर पे यों शबनम के आ | ||
03:14, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ
ग़म की बारिश है तो आ, फिर जमके आ
खूब झम-झमकर बरस काली घटा
यों न दम लेती हुई थम-थमके आ
हम उन्हें कैसे सुनाएँ दिल की बात!
कह रहे हैं, 'बोल पे सरगम के आ'
और दम भर, और दम भर आँधियो!
दो न दस्तक दर पे यों शबनम के आ
जोहना क्या मुँह बहारों का, गुलाब!
तुझको आना है तो बेमौसम के आ