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बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ / गुलाब खंडेलवाल

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बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ
ग़म की बारिश है तो आ, फिर जमके आ

खूब झम-झमकर बरस काली घटा
यों न दम लेती हुई थम-थमके आ

हम उन्हें कैसे सुनाएँ दिल की बात!
कह रहे हैं, 'बोल पे सरगम के आ'

और दम भर, और दम भर आँधियो!
दो न दस्तक दर पे यों शबनम के आ

जोहना क्या मुँह बहारों का, गुलाब!
तुझको आना है तो बेमौसम के आ