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"भले ही बाग़ में कोयल भी है, बहार भी है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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खिले हैं फूल उमंगों के चारों और जहाँ  
 
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कहीं पे बीच में यादों का एक मजार भी है
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दिए तो रूप की पलकों में सज रहे हैं मगर  
 
दिए तो रूप की पलकों में सज रहे हैं मगर  

18:47, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


भले ही बाग़ में कोयल भी है, बहार भी है
नज़र की ओट में हर फूल बेक़रार भी है

खिले हैं फूल उमंगों के चारों और जहाँ
कहीं पे बीच में यादों का एक मज़ार भी है

दिए तो रूप की पलकों में सज रहे हैं मगर
किसी के पाँव की आहट का इंतज़ार भी है

हमें मिटा तो रहे हो, मगर रहे यह याद
इन्हीं लकीरों की हद में तुम्हारा प्यार भी है

गुलाब खिलते हैं डालों पे, यह तो देख लिया
गले में देखा जो काँटों का एक हार भी है!