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भूखे सोए भूखे ऊठे, मैं जाणगी म्हारै टोटा सै / दयाचंद मायना

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भूखे सोए भूखे ऊठे, मैं जाणगी म्हारै टोटा सै
तेरी स्याणी बेटी गैर बख्त, मत घाल जमाना खोटा सै...टेक

तुम ना समझे नगर सेठ की, मैं बोली चाल पिछाण गई
जो इज्जत बेच टूक खां सै, पिता उस कुल की हो हाण गई
या तै मैं भी जाण गई, तू बाप नहीं गल घोटा सै...

नूण, मिर्च और तेल, तम्बाखू, ना घर मैं आट्टा म्हारै सै
जड़ै दया-धर्म का खोज नहीं, उड़ै तू के हाथ पसारै सै
क्यूं जाण बूझ कै तारै सै, तेरी इज्जत भ्रम भरोटा सै...

वो माणस दुख पावै सै, जो करणी जाणै कार नहीं
आड़ै नहीं तै और कितै, के दुनिया मैं रोजगार नहीं
जो जाणै बणज व्यवहार नहीं, भला वो भी के बण जोटा सै...

मन के हारे हार बताई, मन के जीते जीत पिता
लायक वर से करणी चाहिए, जग में प्रेम-प्रीत पिता
यो ‘दयाचन्द’ का गीत पिता, छनद मूसल तै भी मोटा सै...