भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ! मैं झूठ नहीं कहता / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: माँ! मैं झूठ नहीं कहता मैं तुमसे प्यार नहीं करता नहीं चाहता हूँ म…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्र दास
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyMaa}}
 +
<poem>
 
माँ! मैं झूठ नहीं कहता  
 
माँ! मैं झूठ नहीं कहता  
 
 
मैं तुमसे प्यार नहीं करता  
 
मैं तुमसे प्यार नहीं करता  
 
+
नहीं चाहता हूँ मैं तुम्हें
नहीं चाहता हूँ मैं तुम्हे
+
 
+
 
मैं तो अमेरिका को चाहता हूँ  
 
मैं तो अमेरिका को चाहता हूँ  
 
 
माफ़ करना , ओ मेरी स्वर्ग सी बेहतर जन्मभूमि!  
 
माफ़ करना , ओ मेरी स्वर्ग सी बेहतर जन्मभूमि!  
 
+
मुझे नहीं है फक़्र कि मैंने तेरे आँचल में जन्म लिया  
मुझे नहीं है फक्र कि मैंने तेरे आँचल में जन्म लिया  
+
 
+
 
वरना होश सँभालने के बाद से  
 
वरना होश सँभालने के बाद से  
 
 
नहीं देखता सपने अमेरिका के  
 
नहीं देखता सपने अमेरिका के  
 
+
मेरी मातृभाषा!  
मेरी मातृभाषा !  
+
 
+
 
माफ़ करना तुम भी  
 
माफ़ करना तुम भी  
 
+
शर्म के कारण नहीं बोल पाता माँ की ज़ुबान
शर्म के कारण नहीं बोल पाता माँ की जुबान
+
 
+
 
कि आस-पास के लोग कहीं गंवार न समझ लें  
 
कि आस-पास के लोग कहीं गंवार न समझ लें  
 
+
माँ! जैसे तुम अकेली और मरणासन्न हो  
माँ ! जैसे तुम अकेली और मरणासन्न हो  
+
वैसे तुम्हारी सिखाई ज़ुबान है पीड़ित और उपेक्षित  
 
+
लेकिन माँ!  
वैसे तुम्हारी सिखाई जुबान है पीड़ित और उपेक्षित  
+
 
+
लेकिन माँ !  
+
 
+
 
मैं लानत भेजता हूँ उनलोगों पर  
 
मैं लानत भेजता हूँ उनलोगों पर  
 
 
जो माँओं और मातृभूमि को छोड़ कर जा बसे हैं सात समुन्दर पार  
 
जो माँओं और मातृभूमि को छोड़ कर जा बसे हैं सात समुन्दर पार  
 
 
फिर भी करते है चिरौरी  
 
फिर भी करते है चिरौरी  
 
+
कि आहाहा....! मेरा देश, मेरा अपना देश ...  
कि आहाहा....! मेरा देश , मेरा अपना देश ...  
+
 
+
 
माँ! मैं अच्छा पुत्र नहीं हो पाया  
 
माँ! मैं अच्छा पुत्र नहीं हो पाया  
 
 
दुःख तो सालता है इसका  
 
दुःख तो सालता है इसका  
 
 
पर माँ! तुमसे कहता हूँ सच  
 
पर माँ! तुमसे कहता हूँ सच  
 
 
मैं तुम्हें याद नहीं करता हूँ वैसे  
 
मैं तुम्हें याद नहीं करता हूँ वैसे  
 
+
जैसे हिन्दी के कवि करते हैं सिद्धांतों में।
जैसे हिन्दी के कवि करते हैं सिद्धांतों में ।
+
</poem>

18:09, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

माँ! मैं झूठ नहीं कहता
मैं तुमसे प्यार नहीं करता
नहीं चाहता हूँ मैं तुम्हें
मैं तो अमेरिका को चाहता हूँ
माफ़ करना , ओ मेरी स्वर्ग सी बेहतर जन्मभूमि!
मुझे नहीं है फक़्र कि मैंने तेरे आँचल में जन्म लिया
वरना होश सँभालने के बाद से
नहीं देखता सपने अमेरिका के
मेरी मातृभाषा!
माफ़ करना तुम भी
शर्म के कारण नहीं बोल पाता माँ की ज़ुबान
कि आस-पास के लोग कहीं गंवार न समझ लें
माँ! जैसे तुम अकेली और मरणासन्न हो
वैसे तुम्हारी सिखाई ज़ुबान है पीड़ित और उपेक्षित
लेकिन माँ!
मैं लानत भेजता हूँ उनलोगों पर
जो माँओं और मातृभूमि को छोड़ कर जा बसे हैं सात समुन्दर पार
फिर भी करते है चिरौरी
कि आहाहा....! मेरा देश, मेरा अपना देश ...
माँ! मैं अच्छा पुत्र नहीं हो पाया
दुःख तो सालता है इसका
पर माँ! तुमसे कहता हूँ सच
मैं तुम्हें याद नहीं करता हूँ वैसे
जैसे हिन्दी के कवि करते हैं सिद्धांतों में।