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"मेरे अश्कों का राज़ बूझो भी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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तुमको आईना भी दिख जायेगा
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तुम मुझे मानते हो गर अपना
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किंतु उसका गुरूर तोड़ो भी
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अपने दुश्मन से दूरियां रक्खो
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दर्द में देखकर पसीजो भी
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बाद में होगे मुसलमां, हिंदू
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पहले इन्सां हो याद रक्खो भी
 
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14:48, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

मेरे अश्कों का राज़ बूझो भी
ग़म में क्यों हँस रहा हूँ सोचो भी

तुमको आईना भी दिख जायेगा
इक नज़र मेरी तरफ़ देखो भी

तुम मुझे मानते हो गर अपना
दो क़दम साथ मेरे आओ भी

उसके माथे पे खिंची है रेखा
किंतु उसका गुरूर तोड़ो भी

अपने दुश्मन से दूरियां रक्खो
दर्द में देखकर पसीजो भी

बाद में होगे मुसलमां, हिंदू
पहले इन्सां हो याद रक्खो भी