भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैंने चाहा / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने चाहा
तुम्हारी प्रेरणा बनकर
बहूँ
तुम्हारी शिराओं में
तुम्हारे अहंकार ने
ऐसा नहीं होने दिया
मैंने फिर चाहा
तुम्हारी कोई कमजोरी ही बनकर
तुम्हारे पास रहूँ
तुम्हारे पराजय बोध ने ऐसा भी नहीं होने दिया।