भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं कब से गोश बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद नदीम काज़मी
+
|रचनाकार=अहमद नदीम क़ासमी
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}

02:56, 14 जून 2008 का अवतरण

मैं कब से गोश बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी
ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी

मेरी गय्यूर उमंगो, शबाब फानी है
गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी

भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल
बस अब खुदा के लिए काकुलें संवारो भी

मेरी तलाश की मेराज हो तुम्हीं लेकिन
नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी

यह काएनात, अजल से सुपुर्द-ए-इन्सां है
मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी