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मौसम ने तेवर बदले हैं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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मौसम ने तेवर बदले हैं
ख़ुश होकर काँटे मचले हैं

हमें व्यथाओं से डर कैसा
हम पीड़ा की गोद पले हैं

सिर्फ़ तुम्हारे हैं तन-मन से
जैसे भी हम बुरे-भले हैं

कभी न ऐसे दीप बुझेंगे
जो आंधी के बीच जले हैं

मंज़िल उनको ही मिल पाई
जो काँटों की राह चले हैं

आज देश के नेताओं के
मन मैले हैं, तन उजले हैं

विजय-वधू ने वरा उन्हीं को
क़फ़न बांध कर जो निकले हैं

कहने को दीवाली है पर
बहुत अंधेरे दीप तले हैं

रोनेवाले सोच ज़रा कब
रोने से पत्थर पिघले हैं

‘मधुप’ गिरे नीचे उतने ही
जो जितने ऊपर उछले हैं