भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये कैसे दिन आये / नीरजा हेमेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:43, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर में त्योहार है, ये कैसे दिन आए।
लिपे पुते घर-बार हैं, ये कैसे दिन आए।
ऋतु ले रही अंगड़ाई बदली-सी है छाई,
पड़ने लगी फुहार है ये कैसे दिन आए।
पशु-पक्षी, जीव-जन्तु सब हो रहे उल्लसित,
मानव हृदय भी खुशगवार है ये कैसे दिन आए।
सड़कों में पार्कों में बढ़ रही चहल-पहल,
भरे-भरे बाजार हैं ये कैसे दिन आए ।
कृषक भी उल्लसित हो रहे खेतों में,
हरा-भरा कारोबार है ये कैसे दिन आए।
इन दिनों की खुशियाँ हम भर लें हृदय में,
ये दिन तो बस चार हैं ये कैसे दिन आए