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ये सितम दिल पे यार करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
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ये सितम दिल पे यार करते हैं ।
ख़्वाहिशे-ग़मगुसार करते हैं ।।
काश इज़हार की सकत होती
गो तमन्ना हज़ार करते हैं ।
याद करना कोई अज़ाब है क्या
है तो हम बार-बार करते हैं ।
हम कि ख़ामोश हो गए गोया
ज़िक्र बेइख़्तियार करते हैं ।
उसके आँसू भला रूकें क्यूँकर
वो जिसे अश्क़बार करते हैं ।
कौन दामन रफ़ू करे उसका
वो जिसे तार-तार करते हैं ।
सोज़ नादां हैं ख़ाक होकर भी
फ़िक्रे-बाग़ो-बहार करते हैं ।।