भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये सितम दिल पे यार करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 2 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |संग्रह=पुरानी ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये सितम दिल पे यार करते हैं ।
ख़्वाहिशे-ग़मगुसार करते हैं ।।

काश इज़हार की सकत होती
गो तमन्ना हज़ार करते हैं ।

याद करना कोई अज़ाब है क्या
है तो हम बार-बार करते हैं ।

हम कि ख़ामोश हो गए गोया
ज़िक्र बेइख़्तियार करते हैं ।

उसके आँसू भला रूकें क्यूँकर
वो जिसे अश्क़बार करते हैं ।

कौन दामन रफ़ू करे उसका
वो जिसे तार-तार करते हैं ।

सोज़ नादां हैं ख़ाक होकर भी
फ़िक्रे-बाग़ो-बहार करते हैं ।।