भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रजमतिया के चिट्टी / भोजपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:58, 10 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{ KKLokRachna |रचनाकार }} छोटकी गोतिनिया के तनवा के बतिया,<br> पतिया रोई-रोई ना, ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

छोटकी गोतिनिया के तनवा के बतिया,
पतिया रोई-रोई ना, लिखावे रजमतिया।
सोस्ती श्री चिट्टी रउरा भेजनी तेमे लिखल,
सोरे पचे अस्सी रोपेया, भेजनी तवन मिलल
ओतना से नाही कटी, भारी बा बिपतिया। पतिया...
छोटकी के झूला फाटल, जेठकी के नाहीं,
बिटिया सेयान भइल, ओकरो लूगा चाही,
अबगे धरत बाटे कोंहड़ा में बतिया, पतिया ...
रोज -रोज मंगरा मदरसा जाला,
एक दिन तुरले रहे मौलवी के ताला,
ओकरा भेंटाइल बा करीमना संघतिया। पतिया...
पांडे जी के जोड़ा बैला गइलेसऽ बिकाइ,
मेलवा में गइले त पिलवा भुलाइल,
चार डंडा मरले मंगरू, भाग गइल बेकतिया। पतिया...
जाड़ा के महीना बा, रजाई लेम सिआइ,
जाड़ावा से मर गइल दुरपतिया के माई,
बड़ा जोर बीमार बा भिखारी काका के नतिया। पतिया...
कबरी बकरिया रात-भर मेंमिआइल,
छोटका पठरुआ लिखीं कतना में बिकाई,
दुखवा के परले खिंचत बानी जँतिया। पतिया...