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राधिका आ‌ई कुंज-बिहार / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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राधिका आ‌ई कुंज-बिहार।
रह्यौ जहाँ कौ, जैसौ, जो संकेत-समय निरधार॥
आसा हुती, मिलैंगे मोहन तहँ सँकेत-‌अनुसार।
पर वे नहीं मिले, नहिं आ‌ए, घरी बीति ग‌इँ चार॥
भ‌ई अनिष्टस्नसंका जाग्रत, मिलै न दुस्संवाद।
कहा भयौ, कैसे नहिं आ‌ए, छायौ बिषम बिषाद॥
भ‌ई अबेर, चलन लागी लू, प्रगट्यौ निपट निदाघ।
आ न जायँ एहि काल स्याम कहुँ, कठिन भयानक दाघ॥
पठ‌ई एक सखी कौं देखन, जानन प्रिय-कुसलात।
कह्यौ सँदेसौ-’मत अ‌इयौ अब, दाघ जरैंगे गात’॥
अति उदास, संका अनिष्टस्न् की, भय-विह्वलता संग।
ह्वै निरास बैठी निकुंज में, जरत अंग-प्रत्यंग॥