भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोज़ कथा सपनों की / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 15 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रोज़
कथा सपनों की चलती है
रात-भर
कभी किसी टापू पर
भीगे दिन मिलते हैं
और कभी सूरज के
नये पंख हिलते हैं
एक
नयी खुशबू तब पलती है
रात-भर
मुँह-ढाँपे आकृतियाँ
आती हैं-जाती हैं
गुंबज के नीचे वे
शोकगीत गाती हैं
नदी-पार
एक चिता जलती है
रात-भर
भीड़-भरी सडकों पर
यात्राएँ होती हैं
या लहरें
सूने आकाशों को धोती हैं
पहचानें
अनजाने ढलती हैं
रात-भर