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लगें मीठे सिंधु खारे भी / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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बाँसुरी के सुर हमारे भी - तुम्हारे भी
 
रोज़ सपनों की गली से
आरती की गूँज आती है
धूप की पहली किरण
आकाश-पथ के गीत गाती है
 
लगें मीठे आचमन-से सिंधु खारे भी
 
नदी के इस घाट पर
हम-तुम खड़े हैं यों अबोले
नदी के उस पार बच्चे
गा रहे हैं गीत भोले
 
उन्हीं को दोहरा रहे ये गुलहज़ारे भी
 
यही वंशीधुन
हमारी साँस में बजती रही है
पीढ़ियों यह संग सबके
रास-क्षण रचती रही है
 
कल इसी को जप रहे थे चाँद-तारे भी