भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल, हरा, नारंगी, नीला, पीला है / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लाल, हरा, नारंगी, नीला, पीला है
जो भी रंग मिला है, वही पनीला है।

वो बेचारा, हम बेचारों जैसा है
बस बस्ती का पानी जरा नशीला है।

खुलकर सांस नहीं ले पाओगे बाबा
मौसम का अंदाज बहुत ज़हरीला है।

रीढ़ नहीं हैं, घुटनों के बल चलता है
बहुत लिज़लिज़ा, नाम मगर चमकीला है।

दुनिया पूरी जैसे रैम्प बनी कोई
बेलिबास का ही लिबास भड़कीला है।

भरी दुपहरी जैसा, वैसा सांझ ढले
मेरा साया, बदला कब, शर्मीला है।

ये आदम के बेटों की ही चोटें हैं
आसमान को शौक नहीं जो नीला है।