भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोगों ने आग सही कितनी / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 27 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> लो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
लोगों ने आग सही कितनी
लोगों ने आग कही कितनी

सेंकी तो बहुत बुखारी ,पर
बच्चों ने आग गही कितनी

संसद में चिनगी भर पहुँची
सड़कों पर आग बही कितनी

आंखों में कडुआ धुआं-धुआं
प्राणों में आग रही कितनी

हिम नदी गलानी है, नापें
कविता ने आग दही निकली