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वक़्त जब करवटें बदलता है / 'अनवर' साबरी

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वक़्त जब करवटें बदलता है
फ़ितना-ए-हश्र साथ चलता है

मौज-ए-ग़म से ही दिल बहलता है
ये चराग़ आँधियों में जलता है

उस को तूफ़ाँ डुबो नहीं सकता
जो किनारों से बच के चलता है

किस को मालूम है जुनून-ए-हयात
साया-ए-आगही में पलता है

उन की महफ़िल में चल ब-होश-ए-तमाम
कौन गिर कर यहाँ सँभलता है

मैं करूँ क्यूँ न उस की क़दर 'अनवर'
दिल के साँचे में अश्क ढलता है