भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना / निदा फ़ाज़ली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 11 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली }} Category:गज़ल <poeM> वक़्त ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
किस को मालूम यहाँ कौन है कितना अपना.‍‌

जो भी चाहे वो बना ले उसे अपने जैसा
किसी आईने का होता नहीं चेहरा अपना.

ख़ुद से मिलने का चलन आम नहीं है वरना
अपने अंदर ही छुपा होता है रस्ता अपना.

यूँ भी होता है वो ख़ूबी जो है हम से मंसूब
उस के होने में नहीं होता इरादा अपना.

ख़त के आख़िर में सभी यूँ ही रक़म करते हैं
उस ने रसमन ही लिखा होगा तुम्हारा अपना.