भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 10 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:10, 28 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर' }} {{KKPageNavigation |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐक्यभाव ते थिक ध्येय।
दर्शन जीवन सवतरि गेय।।45।।
मानव सभ थिक एक समान।
प्रभुक अंशमे भेद न जान।।46।।

चलु पएरहिं बा उड़ए विमान।
उदर हेतु हो गति नहि आन।।47।।
प्रथमहि देशक भोजन तत्त्व।
करु सम्पादित तखन महत्त्व।।48।।

वसुधा ससुधा पावन नीर।।
प्रकृति देल अछि भारत तीर।।49।।
सात्त्विक भावक लागए रूप।
तामस आर्यक थिक न स्वरूप।।50।।

मृत्स्यन्याय नहि परिचय भूप।
सावधान रहु विषय अनूप।।51।।
भौतिक वादन उन्नति संग।
घटए न कहिओ दया तरंग।।52।।