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शुभ दिन ऐसे भी / कुमार रवींद्र

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शुभ दिन
ऐसे भी होते हैं
 
दिखा सुबह इक बच्चा
जिसकी आँखें नीली थीं
हँसा -
हँसी में उसकी जैसे
धुनें सुरीली थीं
 
ऐसे ही सुर तो
साँसों में
कविता बोते हैं
 
एक चिरइया
गुलमोहर की टहनी पर झूली
पल भर में
काशवी देख उसको रोना भूली
 
कई बार
कुछ मीठे आँसू
आँखें धोते हैं
 
बूँद पड़ी बरखा की
कच्चा आँगन महक उठा
उधर घाट पर
पूजा का दीया भी लहक उठा
 
ऐसे ही शुभ दिन
सागर को
देव बिलोते हैं