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सबरी की मनोदशा / महेन्द्र मिश्र

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मीठे-मीठे चीख-चीख धरी थी बैर,
हेर-हेर बेर-बेर माँगि-माँगि खाई है।
बेर की मिठाई को सराहें राम बेर-बेर,
ढेर-ढेर लखन जू से करत बराई है।
आज लों ना खाई जैसी आज बैर खाई,
कभी भूलके ना पाई जैसी प्रेम की मिठाई है।
द्विज महेन्द्र अति आनंद निरखत मुखारविन्द,
सबरी की सच्चाई आज भक्ति वर पाई है।