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सरोवर / हरि दिलगीर

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ही सुन्दर सांतीको सरोवर,
मन खे केॾो मोहे थो,
पर शायद ई कंहिं खे कल आ,
किचिरो, जंहिं जो काथो कोन्हे,
हिन जे तर में आहि सथयलु।

हीउ किहिड़े ई पत्थर सां,
लहरूं लहरूं थी पवंदो,
किचिरो मथ ते निकिरी ईंदो,
जिअं मन जे सरोवर में।