भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुब‍‌ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 7 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |संग्रह=ज़िन्दा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
क्या ख़बर आज ख़रामां सरे-गुलज़ार है कौन

शाम गुलनार हुई जाती है देखो तो सही
ये जो निकला है लिये मशअले-रुख़सार है कौन

रात महकी हुई आई है कहीं से, पूछो
आज बिखराये हुए जुल्फे-तरहदार है कौन

फिर डरे-दिल पे कोइ देता है रह-रह दस्तक
जानिए फिर दिले-वहशी का तलबगार है कौन