भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मरण / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:01, 28 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरियर खसखस -
अपराजिताक छिड़िआयल लत्ती सँ गछारल!
विंहुसैतवरवश -
हरसिंगारक अलसायल सांगह
कोढ़िआयल मूडी आ ठकुआयल ठाढिक ल'ग
शरदक सिहरैत साँझ मे
गमकैत आँगनक हहरैत पातक छानल
चमकैत चानक त'र -
तकैत रही -
जौडखट्टा पर पड़ल पड़ल
फूजल दुरुक्खा सं
श्रीमतीक शनीचरीबाट!
नहि अयलीह -
हा! हन्त!
हहरिक' रहि गेल छलहुँ !
के क' देतनि,
आलूक अनोन साना
अरबा चाउरक भात!
कत' भेटतनि?अरबाइन औंटल दूध
आइ छलनि अनोना -
रहि गेल होयतीह ओहिना
डिप्टीनिसपिटरक डिप्टेशन मे