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"हम रातों को उठ उठ के / हसरत जयपुरी" के अवतरणों में अंतर

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हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते <br>
 
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बेचैन सी पलओं में मोती से पिरोते हैं <br><br>
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होता चला आया है बेदर्द ज़माने में <br>
 
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सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं <br><br>
 
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अंदज़-ए-सितम उन का देखे तो कोई "हसरत" <br>
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मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं <br><br>
 
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं <br><br>

09:35, 14 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

हम रातों को उठ उठ के जिन के लिये रोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं

हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं

होता चला आया है बेदर्द ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं

अंदाज़-ए-सितम उन का देखे तो कोई "हसरत"
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं