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"हम रातों को उठ उठ के / हसरत जयपुरी" के अवतरणों में अंतर
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Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
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हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते <br> | हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते <br> | ||
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होता चला आया है बेदर्द ज़माने में <br> | होता चला आया है बेदर्द ज़माने में <br> | ||
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं <br><br> | सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं <br><br> | ||
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मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं <br><br> | मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं <br><br> |
09:35, 14 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
हम रातों को उठ उठ के जिन के लिये रोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं
हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं
होता चला आया है बेदर्द ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं
अंदाज़-ए-सितम उन का देखे तो कोई "हसरत"
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं