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"हवा में मौत के बीज / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर

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Poem.
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| रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
Hawa me maut ke bich.
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| संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत
Omprakash sarswat.
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}}
Ek hi karkhane ki gas
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<poem>एक ही कारख़ाने की गैस
Sari basti ke nathuno me
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सारी बस्ती के नथुनों में
maut ki tarah beh gayi
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मौत की तरह भर गयी
  
Rat ke taron- se
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रात के तारों-से
  Wayada kerke soyi basti,
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वायदा करके सोयी बस्ती
Subah,suraj ke
+
सुबह,सूरज के
Sawagat se muker gayi
+
स्वागत से मुकर गयी
  
Us din
+
उस दिन
bhor ki ghantiyon se
+
भोर की घंटियों-से
Panchhiyon ke kanth nahein baje
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पंछियों के कण्ठ नहीं बजे
Karkhane ko
+
कारखाने को
devta ki tarah pujane wale hath
+
देवता की तरह पूजने-वाले हाथ
utsah se nahein saje
+
उत्साह से नहीं सजे
 
+
bachey
+
maon ki chhatiyon
+
se chipker roye
+
bachey
+
maon ki chhatiyon se
+
per jivan ke bol
+
kisi-jivha per nahein uge
+
 
+
carbide
+
hazar sanso ko
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oxizen ki tarah pi gayi
+
Bhopal ki gas
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sakdon  changaze-hitlaron ke
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jaghanya -adhayayon ko
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minton meji gayi
+
 
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asafalata ne
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uplabdi ko
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sharminda ker diya
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moun ne
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maot ko
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jindaker diya
+
 
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sari duniya
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hairan thi
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ki yeh sab kaise ho gaya
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wah kaun sa
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aatatayi tha
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jo hawa
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me maut ke
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bij bo gaya.
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Poem.Mukesh Negi
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बच्चे
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माओं की छातियों से
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चिपक कर रोए
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माँएं
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बच्चों की छातियों से
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पर जीवन के बोल
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किसी-जिह्वा पर नहीं उगे
  
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कारबाईड
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अढ़ाई हज़ार साँसों को क्षण में
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ऑक्सीज़न की तरह पी गयी
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भोपाल की गैस
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सैंकड़ों चंगेज़-हिटलरों के
 +
जघन्य-अध्यायों को
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मिनटों में जी गई
  
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असफलता ने
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उपलब्धि को
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शर्मिन्दा कर दिया
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मौन ने
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मौत को
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ज़िन्दा कर दिया
  
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सारी दुनिया
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हैरान थी
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कि यह सब कैसे हो गया
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वह कौन-सा
 +
आततायी था
 +
जो हवा में
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मौत के बीज बो गया
 
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12:54, 20 जून 2020 का अवतरण

एक ही कारख़ाने की गैस
सारी बस्ती के नथुनों में
मौत की तरह भर गयी

रात के तारों-से
वायदा करके सोयी बस्ती
सुबह,सूरज के
स्वागत से मुकर गयी

उस दिन
भोर की घंटियों-से
पंछियों के कण्ठ नहीं बजे
कारखाने को
देवता की तरह पूजने-वाले हाथ
उत्साह से नहीं सजे

बच्चे
माओं की छातियों से
चिपक कर रोए
माँएं
बच्चों की छातियों से
पर जीवन के बोल
किसी-जिह्वा पर नहीं उगे

कारबाईड
अढ़ाई हज़ार साँसों को क्षण में
ऑक्सीज़न की तरह पी गयी
भोपाल की गैस
सैंकड़ों चंगेज़-हिटलरों के
जघन्य-अध्यायों को
मिनटों में जी गई

असफलता ने
उपलब्धि को
शर्मिन्दा कर दिया
मौन ने
मौत को
ज़िन्दा कर दिया

सारी दुनिया
हैरान थी
कि यह सब कैसे हो गया
वह कौन-सा
आततायी था
जो हवा में
मौत के बीज बो गया