भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाँ, यह सच है / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ, यह सच है
बच्चे जादूगर होते हैं
 
बच्चे हँसते
और बिखरते
चारों ओर हवा में अचरज
सँग उनके
फिरती है तितली
देख उन्हें बौराता सूरज
 
बचपन के खुद
रंग-बिरंगे पर होते हैं
 
अगरु-गंध सी
उनकी साँसें
और आरती-सा उनका मन
उनके होने से
हो जाता
घर का कोना-कोना पावन
 
बच्चों के दिल
सच में, पूजाघर होते हैं
 
खेल-खेल में रचते बच्चे
नेह-पर्व
खुशबू के मौसम
उनके संग
खेलते हम भी
पर जल्दी ही होते बेदम
 
उम्र ढले पर
हम ऋतु के खण्डहर होते हैं