भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिंडोरें झूलत स्यामा-स्याम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:58, 13 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिंडोरें झूलत स्यामा-स्याम।
नव नट-नागर, नवल नागरी, सुंदर सुषमा-धाम॥
सावन मास घटा घन छा‌ई, रिमझिम बरसत मेह।
दामिनि दमकत,चमकत गोरी, बढ़त नित्य नव नेह॥
कल्पद्रुम-तल सीतल छाया रतन-हिंडोरा सोहै।
झूलत प्रीतम-प्रिया ताहि पर, चिा परस्पर मोहै॥
नील-हेम तनु पीत-नील पट सोहत सरस सृङङ्गार।
चंचल मुकुट, सुचारु चंद्रिका, गल मुक्तामनि-हार॥
सखि ललितादिक देत झकोरे, मिलत अंग-प्रति-‌अंग।
गावत मेघ-मलार मधुर सुर, बाजत ढोल-मृदंग॥
हँसत-हँसावत रस बरसावत सखी-सहचरी-बृंद।
उमग्यौ आनँद-सिन्धु, मगन भ‌ए दो‌ऊ आनँद-कंद॥